व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> जीने का रहस्य जीने का रहस्यशोभा डे
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बहुचर्चित पुस्तक "Shobhaa at sixty" का हिन्दी रुपान्तरण
जीने का रहस्य हर उम्र में...
जब मैं सोलह साल की थी, तो मैंने कभी कल्पना तक नहीं की थी कि मैं साठ साल की भी हूंगी।
यह बिल्कुल ही असंभव बात है। साठ बरस! यह तो बूढ़ा होना ही हुआ। न सिर्फ बूढ़ा, संभवतः मृत। एक संख्या के रूप में साठ भयभीत करने वाला नहीं है, खास तौर पर इसलिए क्योंकि यह मेरे बेचैन स्कूली-लड़की जैसे दिमाग में ठहरता ही नहीं है। लोग साठ बरस के होते ही नहीं हैं - वे मर जाते हैं। क्रूर व भयानक, पर सच। सोलह साल की उम्र या बीस बरस के बाद लोग पुराने लगने लगते हैं। पर आप जानते हैं क्यों? साठ बरस की उम्र इतनी डरावनी नहीं है। हालांकि, यह मैं कैसे समझाऊं... देखा जाय तो सन्तुष्टिदायक है।
यह बिल्कुल ही असंभव बात है। साठ बरस! यह तो बूढ़ा होना ही हुआ। न सिर्फ बूढ़ा, संभवतः मृत। एक संख्या के रूप में साठ भयभीत करने वाला नहीं है, खास तौर पर इसलिए क्योंकि यह मेरे बेचैन स्कूली-लड़की जैसे दिमाग में ठहरता ही नहीं है। लोग साठ बरस के होते ही नहीं हैं - वे मर जाते हैं। क्रूर व भयानक, पर सच। सोलह साल की उम्र या बीस बरस के बाद लोग पुराने लगने लगते हैं। पर आप जानते हैं क्यों? साठ बरस की उम्र इतनी डरावनी नहीं है। हालांकि, यह मैं कैसे समझाऊं... देखा जाय तो सन्तुष्टिदायक है।
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